सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानून के जिन प्रावधानों को वह असंवैधानिक घोषित कर दे, सरकार को दोबारा उन्हीं को लागू करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. कोर्ट ने ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट, 2021 की कई धाराओं को रद्द करते हुए बुधवार (19 नवंबर, 2025) को यह टिप्पणी की है. यह धाराएं ट्रिब्यूनल सदस्यों की नियुक्ति, कार्यकाल और सेवा शर्तों से जुड़ी थीं.
दरअसल, नवंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल 5 साल होना चाहिए, लेकिन सरकार 2021 में नया कानून ले आई. संसद से पारित इस कानून में कार्यकाल 4 साल कर दिया गया. अपने फैसले में कोर्ट ने यह भी कहा था कि ट्रिब्यूनल सदस्य बनने के लिए आयु सीमा 50 साल नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे युवा विशेषज्ञ ट्रिब्यूनल का हिस्सा नहीं बन पाते, लेकिन सरकार ने संशोधित कानून में न्यूनतम आयु 50 साल कर दी.
मद्रास बार एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में नए कानून को दी थी चुनौती
मद्रास बार एसोसिएशन ने इन बातों को आधार बनाते हुए सुप्रीम कोर्ट में नए कानून को चुनौती दी थी. अब भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने कहा है कि 2021 में किया गया संशोधन न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सरकार और कोर्ट के बीच शक्तियों के विभाजन के सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं. कोर्ट ने सदस्यों के कार्यकाल की पहले लागू आयु-सीमा को बहाल किया है. अब इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल (ITAT) और कस्टम्स एक्साइज एंड सर्विस टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल (CESTAT) में सदस्य 62 वर्ष और अध्यक्ष 65 वर्ष तक सेवाएं दे सकेंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को दिए निर्देश
कोर्ट ने केंद्र को 4 महीनों के भीतर नेशनल ट्रिब्यूनल्स कमीशन बनाने का भी निर्देश दिया. यह कमीशन ट्रिब्यूनल सदस्यों की नियुक्ति, कामकाज में पारदर्शिता जैसे विषयों को देखेगा. अपने फैसले में कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि कानून की किसी धारा को एक जगह से हटाकर दूसरी जगह लिख देना समस्या का समाधान नहीं है. इससे असंवैधानिकता दूर नहीं होती. गैरकानूनी ठहराई गई व्यवस्था को बार-बार लागू करने की कोशिश पहले से बोझिल कोर्ट का समय बर्बाद करने वाली बात है.
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