DS NEWS | The News Times India | Breaking News
EXPLAINED: ओपिनियन पोल में कितनी सच्चाई, ये हर बार सही क्यों नहीं होते?
India

EXPLAINED: ओपिनियन पोल में कितनी सच्चाई, ये हर बार सही क्यों नहीं होते?

Advertisements



मान लीजिए, एक छोटे से कस्बे में एक साधारण सा बाजार है. वहां एक युवक खड़ा होकर लोगों से पूछता है कि आपको लगता है कि शहर की सड़कें बेहतर होनी चाहिए या पार्क? कुछ लोग हंसते हुए जवाब देते हैं, कुछ जल्दी-जल्दी निकल जाते हैं. ये सवाल इतने साधारण लगते हैं, लेकिन इनके जवाबों से शहर के मेयर को पता चल जाता है कि लोग क्या चाहते हैं. यही है ओपिनियन पोल की जड़ यानी जनता की राय को एक छोटे से नमूने से समझना.

3 नवंबर को बिहार चुनाव के लिए ओपिनियन पोल के नतीजे आए. लेकिन यह हमेशा सही नहीं होते. अब सवाल उठता है कि फिर इसे कराया क्यों जाता है? हालांकि, आपको एक बात बता दें कि यह एग्जिट पोल से अलग होते हैं.

तो आइए ABP एक्सप्लेनर में समझते हैं कि ओपिनियन क्या है, अक्सर गलत निकलने पर भी क्यों जरूरी है और इसका इतिहास क्या रहा है…

सवाल 1- आखिर ये ओपिनियन पोल होता क्या है और यह जनता की आवाज कैसे बन जाता है?

जवाब- ओपिनियन पोल एक तरीके का सर्वे है, जिसमें एक छोटे समूह के लोगों से सवाल पूछे जाते हैं ताकि पूरे समाज या देश की राय का अंदाजा लगाया जा सके. ये कोई जादू नहीं, बल्कि गणित और सांख्यिकी का खेल है. मान लीजिए, आप बिहार के हर घर से पूछें कि ‘क्या आप NDA को वोट देंगे?’- ये नामुमकिन है, क्योंकि राज्य में 7.42 करोड़ वोटर हैं. इसलिए पोलस्टर्स 1 हजार से 2 हजार लोगों का नमूना चुनते हैं, जो पूरे बिहार का प्रतिनिधित्व करें. इनमें ग्रामीण, शहरी, युवा, बुजुर्ग और सभी जातियों के लोग शामिल होते हैं. उनके जवाबों से प्रतिशत निकालते हैं.

इसकी जड़ें 19वीं सदी में हैं. पहला रिकॉर्डेड पोल 1824 में अमेरिका के राष्ट्रपित चुनाव के लिए रैलेघ स्टार एंड नॉर्थ कैरोलिना स्टेट गजेट अखबार ने किया, जहां एंड्रयू जैक्सन को 335 वोट और जॉन किंसी एडम्स को 169 दिखाए गए. लेकिन आधुनिक रूप जॉर्ज गैलप ने दिया, जिन्होंने 1935 में अमेरिका में ‘गैलप पोल’ शुरू किया. उनकी 1940 की किताब ‘द पल्स ऑफ डेमोक्रेसी’ में लिखा है कि रैंडम सैंपलिंग से 95% सटीकता मिल सकती है.

भारत में यह 1950 के दशक में आया. दिल्ली का इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन (IIPO) ने 1957 के लोकसभा चुनाव से पहले पहला राष्ट्रीय पोल किया, जिसमें कांग्रेस को 70% सपोर्ट दिखाया. प्यू रिसर्च सेंटर की 2024 रिपोर्ट कहती है कि पोल्स लोकतंत्र को मजबूत बनाते हैं, क्योंकि ये हर आवाज को मौका देते हैं. लेकिन याद रखें कि ये अनुमान है, जैसे मौसम का पूर्वानुमान, जो बारिश की गारंटी नहीं है.

सवाल 2- ओपिनियन पोल कैसे तैयार होता है और क्या इसके पीछे कोई सीक्रेट फॉर्मूला है?
जवाब- ये कोई जटिल जादू नहीं, बल्कि स्टेप-बाय-स्टेप प्रोसेस है, जैसे चाय बनाना यानी हर चीज सही जगह पर होनी चाहिए.

  • सबसे पहले ‘यूनिवर्स’ तय होता है यानी किसकी राय चाहिए? जैसे बिहार के 7.42 वोटर्स में युवाओं की.
  • फिर सैंपलिंग होती है. गैलप की 1948 रिपोर्ट के मुताबिक, रैंडम तरीके से लोग चुने जाते हैं. कंप्यूटर से फोन नंबर या एड्रेस जनरेट होते हैं. उदाहरण से समझें कि JVC पोल के लिए 1,500 लोगों से बात की, जो बिहार के हर जिले का आईना बने.
  • इसके लिए सवाल न्यूट्रल होने चाहिए. ब्रिटैनिका की 2023 गाइड के मुताबिक उदाहरण लें तो ‘क्या नीतीश कुमार अच्छे सीएम हैं?’ की बजाय ‘आपके लिए सीएम की पहली पसंद कौन है?’
  • यह इंटरव्यू फोन, आमने-सामने या ऑनलाइन होते हैं. गैलप आजकल मोबाइल पर फोकस करता है, क्योंकि 90% अमेरिकी स्मार्टफोन इस्तेमाल करते हैं.
  • डेटा आने के बाद ‘वेटिंग’ होती है. यानी उम्र, लिंग और जाति के हिसाब से बैलेंस किया जाता है. प्यू की 2024 मेथडोलॉजी के मुताबिक, अगर सैंपल में महिलाएं कम हैं, तो उनके जवाबों को वेट बढ़ाकर सेंसरस डेटा से मैच किया जाता है.
  • आखिर में एनालिसिस होता है. मार्जिन ऑफ एरर (±3-5%) बताता है कि किस प्रत्याशी या पार्टी की जीतने की संभावना है. CSDS-लोकनीति ने 2019 लोकसभा में 41.8% NDA वोट शेयर का अंदाजा लगाया था, जो असल 45% के करीब था.

ये प्रोसेस काफी महंगा होता है. एक स्टेट पोल में 20 से 50 लाख रुपए खर्च होते हैं. लेकिन राजनेताओं को कैंपेन की दिशा मिल जाती है.

सवाल 3- ओपिनियन पोल गलत साबित क्यों होता है और क्या ये हमेशा जनता को बेवकूफ बनाता है?
जवाब- ओपिनियन पोल हमेशा गलत साबित नहीं होता, लेकिन गलतियां आम हैं, जैसे रोड पर गड्ढा नजर नहीं आता. इस गलती की 3 बड़ी वजहें हैं…

1. सैंपलिंग एरर: अगर नमूना सही न लिया तो गलती होगी. 1936 में अमेरिकी चुनाव में लिटरेरी डाइजेस्ट ने 23 लाख लोगों से पूछा, लेकिन सैंपल अमीरों का था. उन्होंने रूजवेल्ट को 43% दिया, लेकिन असल 61% मिले, क्योंकि डिप्रेशन में गरीब निर्णायक थे.

2. शाई वोटर इफेक्ट: अक्सर लोग अपनी राय छुपाते हैं. जो लोग पोल में एक बात कहते हैं, और वोट में दूसरी बात करते हैं. ये कोई नई बात नहीं है. ये मनोवैज्ञानिक और सामाजिक दबाव का नतीजा है. लोग सोचते हैं अगर मैंने किसी पार्टी को वोट देने की बात कही, तो लोग मुझे गलत समझेंगे. जबकि मेरे दोस्त, परिवार या समाज किसी और पार्टी को ज्यादा पसंद करते हैं. 2016 अमेरिकी चुनाव में ट्रंप सपोर्टर्स ने ‘नस्लवादी’ डर से झूठ बोला. ट्रंप वोटर्स ने 3.9% कम बताया.

3. लेट स्विंग: कई वोटर्स की आखिरी पल में राय बदल जाती है. 1970 ब्रिटिश चुनाव में लेबर को हारने का अनुमान था, लेकिन कंजर्वेटिव्स हार गए. यानी अगर किसी ने कहा कि महिला सशक्तिकरण के लिए NDA को वोट दूंगा, लेकिन वोटिंग वाले दिन नौकरी के लिए राजद को वोट दे दिया.

भारत में 2004 के लोकसभा चुनाव में इंडिया टुडे-ORG पोल ने NDA ka 272 सीटें दीं, लेकिन UPA ने 218 सीटें जीत लीं. यहां इंडिया शाइनिंग फेल हो गया. 2015 में बिहार में कई पोल्स ने NDA को 150 से ज्यादा सीटें दिखाई, लेकिन महागठबंधन 178 सीटें ले गया.

सवाल 4- क्या ओपिनियन पोल कभी सही साबित हुआ है?
जवाब- ओपिनियन पोल की सफलताएं भी कमाल की हैं. 1998-1999 लोकसभा चुनाव में CSDS ने NDA को सही प्रोजेक्ट किया था. तब NDA को 260 से ज्यादा सीटें दीं, लेकिन असल में करीब 254 मिलीं. NDA की सरकार बनी. 1999 में NDA को 300 से ज्यादा सीटें प्रेडिक्ट कीं और 299 मिलीं. 2014 लोकसभा चुनाव में NDA को 41.8% वोट शेयर दिया, जो असल में 45.3% वोट प्रतिशत निकला.

द हिंदू की 2016 की रिपोर्ट में CSDS को भारतयी पोलिंग का चैंपियन कहा गया, क्योंकि उन्होंने 2009 में UPA की अप्रत्याशित जीत को भी सही पकड़ा था. अनुमान 38% वोट का था और असल में 38.1% रहा था.

सवाल 5- ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल में क्या फर्क है और यह क्या असर डालता है?
जवाब- दोनों पोल्स जनता की राय मापते हैं, लेकिन टाइमिंग और तरीके से जमीन-आसमान का फर्क है…

ओपिनियन पोल: चुनाव से पहले होते हैं और पूछते हैं कि आप किसे वोट देंगे. ये इरादा मापता है. लेकिन इरादा बदल सकता है.

एग्जिट पोल: वोट डालने के बाद बूथ पर पूछते हैं कि आपने किसे वोट दिया? ये हकीकत मापता है. एग्जिट पोल ज्यादा सटीक होते हैं क्योंकि झूठ कम होता है. पॉलीएस की 2017 गाइड कहती है कि ओपिनियन कैंपेन के लिए है और एग्जिट पोल रिजल्ट प्रेडिक्शन के लिए है.



Source link

Related posts

1965 की तरह सर क्रीक में युद्ध छेड़ने की फिराक में पाकिस्तान? PAK नेवी चीफ ने की ये 3 बोट तैनात

DS NEWS

डेंजर जोन में पहुंच गए ये 2 राज्य, 7 दिन तक भारी बारिश, जानें यूपी-दिल्ली समेत देश का मौसम

DS NEWS

राहुल गांधी ने जिसे बताया ब्राजीलियन मॉडल, वो निकली पिंकी? वोट चोरी के दावों पर बड़ा खुलासा

DS NEWS

Leave a Comment

DS NEWS
The News Times India

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More

Privacy & Cookies Policy