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‘राजनीतिक दलों के बीच हो सौहार्दपूर्ण माहौल’, मानसून सत्र से पहले बोले उपराष्ट्रपति धनखड़
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‘राजनीतिक दलों के बीच हो सौहार्दपूर्ण माहौल’, मानसून सत्र से पहले बोले उपराष्ट्रपति धनखड़

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संसद के मानसून सत्र की पूर्व संध्या पर रविवार (20 जुलाई, 2025) को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सार्थक और गंभीर चर्चा के लिए राजनीतिक दलों के बीच सौहार्दपूर्ण माहौल का आह्वान किया और सांसदों से अनुचित शब्दों का प्रयोग करने से बचने की अपील की.

नई दिल्ली में राज्यसभा इंटर्न के एक समूह को संबोधित करते हुए राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने टेलीविजन परिचर्चाओं में तीखी नोकझोंक होने का जिक्र किया और कहा, ‘‘हम इस तरह की चीजों से आजिज आ गए हैं.’’

उन्होंने आश्चर्य जताते हुए कहा, ‘‘हमारे बीच मतभेद हो सकते हैं, असहमतियां हो सकती हैं, लेकिन हमारे दिलों में कड़वाहट कैसे हो सकती है? मैं राजनीति के क्षेत्र के सभी लोगों से अपील करता हूं, कृपया एक-दूसरे का सम्मान करें. कृपया टेलीविजन पर या किसी भी पार्टी के नेतृत्व के खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग न करें. यह हमारी सभ्यता का सार नहीं है.’’

रचनात्मक राजनीति में शामिल हों राजनीतिक दल- उपराष्ट्रपति

सोमवार (21 जुलाई, 2025) से शुरू हो रहे मानसून सत्र में सार्थक चर्चा की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए धनखड़ ने कहा, ‘‘अगर हम अपने दृष्टिकोण पर विश्वास करते हैं और यह मानते हैं कि मैं ही सही हूं, तो दूसरे हमेशा गलत होते हैं – यह लोकतंत्र नहीं है. यह हमारी संस्कृति नहीं है. यह अहंकार है. हमें अपने अहंकार पर नियंत्रण रखना चाहिए. हमें यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि दूसरे व्यक्ति का दृष्टिकोण अलग क्यों है, यही हमारी संस्कृति है. हमें अपने दृष्टिकोण पर विश्वास रखना होगा. लेकिन हमें दूसरे के दृष्टिकोण का भी सम्मान करना होगा. इसलिए मैं राजनीतिक दलों से रचनात्मक राजनीति में शामिल होने की अपील करता हूं.“

मैं मानता हूं कि आने वाला सत्र महत्वपूर्ण होगा- उपराष्ट्रपति

उन्होंने कहा, “भारत ऐतिहासिक रूप से विमर्श, संवाद, बहस और विचार-विमर्श के लिए जाना जाता है. आजकल संसद में यह सब दिखाई नहीं दे रहा है. मैं मानकर चलता हूं कि आने वाला सत्र महत्वपूर्ण होगा. मुझे पूरी उम्मीद है कि सार्थक चर्चा, गंभीर विचार-विमर्श होगा, जो भारत को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा. ऐसा नहीं है कि सब कुछ ठीक है. हम कभी भी ऐसे समय में नहीं रहेंगे जहां सब कुछ ठीक हो. किसी भी समय कुछ न कुछ क्षेत्रों में कमी रहेगी और सुधार की हमेशा गुंजाइश होती है.”

उन्होंने कहा, “अगर किसी चीज को सुधारने का कोई सुझाव है, तो वह निंदा नहीं है. वह आलोचना नहीं है. वह केवल आगे के विकास के लिए एक सुझाव है. इसलिए मैं राजनीतिक दलों से रचनात्मक राजनीति में शामिल होने की अपील करता हूं. मैं सभी दलों से अपील करता हूं, सत्ता पक्ष की पार्टियां, सत्तारूढ़ दल और दूसरी तरफ की पार्टियां. हमें लचीला होना चाहिए.

राजनेताओं को गाली देना बंद करें- उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति ने कहा, “मैं राजनेताओं से अपील करता हूं कि व्यक्तिगत हमलों से बचें. अब समय आ गया है कि हम राजनेताओं को गालियां देना बंद करें. जब विभिन्न राजनीतिक दलों में लोग दूसरे राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं को गालियां देते हैं, तो इससे हमारी संस्कृति का भला नहीं होता. हममें मर्यादा और परस्पर सम्मान का पूर्ण भाव होना चाहिए और यही हमारी संस्कृति की मांग है. अन्यथा हमारी विचार प्रक्रिया में एकता नहीं हो सकती है.”

(रिपोर्ट पीटीआई के इनपुट के साथ)

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