दूरगामी परिणामों वाले एक ऐतिहासिक मामले में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (21 जुलाई, 2025) को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा स्थित संयुक्त पूछताछ केंद्र (जेआईसी) में एक पुलिस कांस्टेबल को कथित हिरासत में प्रताड़ित करने की जांच करने का आदेश दिया और साथ ही उसे मुआवजा भी दिया.
कोर्ट ने इस दुर्व्यवहार के लिए जिम्मेदार जम्मू-कश्मीर पुलिस के अधिकारियों को तत्काल गिरफ्तार करने का भी निर्देश दिया और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर को अपीलकर्ता-पीड़ित खुर्शीद अहमद चौहान को उसके मौलिक अधिकारों के घोर उल्लंघन के लिए क्षतिपूर्ति के रूप में 50 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया.
पीड़ित के साथ अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने उस मामले की सुनवाई की, जिसमें अपीलकर्ता एक पुलिस कांस्टेबल ने हाई कोर्ट की ओर से उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 309 (आत्महत्या का प्रयास) के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
खुर्शीद ने आरोप लगाया कि 20 से 26 फरवरी, 2023 तक जेआईसी कुपवाड़ा में छह दिनों की अवैध हिरासत के दौरान उनके गुप्तांगों को क्षत-विक्षत करने सहित अमानवीय और अपमानजनक यातनाएं दी गईं. उन्होंने जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख हाई कोर्ट में एक मामला दायर किया था, लेकिन अदालत ने उनकी याचिका खारिज कर दी और उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को वैध घोषित कर दिया.
हिरासत में हिंसा पर कोर्ट की कड़ी आपत्ति
हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए, जस्टिस मेहता की ओर से लिखित फैसले में कहा गया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के तहत कथित अपराध की आपराधिक कार्यवाही जारी रखना न्याय का उपहास होगा और इसलिए प्राथमिकी को रद्द कर दिया गया.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अवैध हिरासत के दौरान अपीलकर्ता की तरफ से झेली गई हिरासत में हिंसा पर कड़ी आपत्ति जताई. इस दुर्व्यवहार के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के बारे में विस्तृत जांच करने के अलावा, सीबीआई को कुपवाड़ा स्थित संयुक्त पूछताछ केंद्र में व्याप्त व्यवस्थागत मुद्दों की भी जांच करने का निर्देश दिया.
पुलिस अधिकारियों की गिरफ्तारी का आदेश
कोर्ट ने इस बात का आकलन करने की आवश्यकता पर जोर दिया कि क्या संरचनात्मक या संस्थागत कमियों के कारण दंड से मुक्ति का माहौल बना, जिसके कारण हिरासत में दुर्व्यवहार हुआ. कोर्ट ने आगे आदेश दिया कि कथित तौर पर यातना में शामिल पुलिस अधिकारियों को एक महीने के भीतर तुरंत गिरफ्तार किया जाए और एफआईआर दर्ज होने की तारीख से तीन महीने के भीतर जांच पूरी की जाए.