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‘ऐसा कोई फैसला नहीं देना चाहते जिससे हिन्दू सामाजिक ढांचे को नुकसान हो’, बोला सुप्रीम कोर्ट
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‘ऐसा कोई फैसला नहीं देना चाहते जिससे हिन्दू सामाजिक ढांचे को नुकसान हो’, बोला सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि महिलाओं को अधिकार देने के नाम पर वह हजारों सालों से चले आ रहे हिन्दू सामाजिक और पारिवारिक ढांचे को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता. कोर्ट ने यह टिप्पणी उन याचिकाओं को सुनते हुए कि जिनमें निःसंतान विधवा की संपत्ति उसके माता-पिता या भाई-बहनों को देने की मांग की गई है.

क्या है मामला? 
यह विवाद हिन्दू उत्तराधिकार कानून की धारा 15 और 16 से जुड़ा है. इनके मुताबिक अगर कोई महिला निःसंतान मरती है और उसने कोई वसीयत भी नहीं की है, तो उसकी संपत्ति पति को जाएगी. अगर पति जीवित नहीं है तो पति के वारिसों यानी पति के परिवार के लोगों को संपत्ति दी जाएगी. अगर पति का कोई उत्तराधिकारी नहीं है, तब महिला के माता-पिता या भाई-बहन को संपत्ति मिलेगी.

याचिकाकर्ताओं की मांग
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल सभी याचिकाओं में व्यक्तिगत विवादों को उठाते हुए कानून के प्रावधान को चुनौती दी गई है. इनमें कहा गया है कि आधुनिक जमाने में इस तरह की व्यवस्था महिला से भेदभाव है. उसकी खुद की अर्जित संपत्ति उसके परिवार को ही मिलनी चाहिए.

कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस बी वी नागरत्ना और  जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा, ‘हिन्दू सामाजिक व्यवस्था को नुकसान मत पहुंचाइए. हम नहीं चाहते कि हम कोई ऐसा निर्णय दें जो हजारों सालों से चले आ रहे ढांचे को तोड़े. कोर्ट महिलाओं को अधिकार देने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन समाज की संरचना और अधिकारों में संतुलन होना चाहिए.’

‘महिला पति के परिवार से जुड़ी’
कोर्ट ने कहा कि अगर कोई महिला अपने मायके वालों को संपत्ति देना चाहती है तो वसीयत करने पर कोई रोक नहीं है, लेकिन अगर वह बिना वसीयत मरती है, तब उसके पति के परिवार को प्राथमिकता दी गई है. जस्टिस नागरत्ना ने कहा, ‘महिला जब विवाह करती है तो वह पति के परिवार की हो जाती है. उसका गोत्र बदल कर वही हो जाता है जो पति का है. कानून में भी जब उसे भरण-पोषण मांगना होता है, तब वह पति या उसके परिवार से मांगती है. अपने माता-पिता या भाई-बहन पर मुकदमा नहीं करती.’

वकीलों ने क्या कहा?
याचिकाकर्ता पक्ष के लिए पेश वरिष्ठ वकीलों कपिल सिब्बल और मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि महिलाओं की सामाजिक स्थिति में बहुत बदलाव हुआ है. वह बड़े-बड़े व्यापार भी चला रही हैं. कोर्ट को हिन्दू सामाजिक ढांचे की चिंता नहीं करनी चाहिए. केंद्र सरकार के लिए पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने कहा कि कानून निर्माताओं ने बहुत सोचकर कानून बनाया था. याचिकाकर्ता जानबूझकर हिन्दू सामाजिक ढांचे को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं.

मामला मध्यस्थता केंद्र भेजा
बुधवार, 24 सितंबर को हुई सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि जो व्यक्तिगत विवाद उसके सामने आए हैं, उनका आपसी बातचीत से निपटारा हो जाना बेहतर होगा इसलिए वह मामले को पहले मध्यस्थता केंद्र भेज रहा है. वहां सभी पक्ष आपस में बात कर सुलह का प्रयास करें. 11 नवंबर को मामले पर दोबारा सुनवाई होगी. अगर समाधान नहीं निकला तो कोर्ट आगे विचार करेगा.

महिलाओं को संपत्ति अधिकार पर भी टिप्पणी
सुनवाई के दौरान जजों ने उत्तराधिकार कानून में पहले हुए संशोधनों का भी जिक्र किया. कोर्ट ने खासतौर पर 2005 के संशोधन की चर्चा की जिसमें बेटियों को संयुक्त पारिवारिक संपत्ति में समान अधिकार दिया गया है. कोर्ट ने कहा, ‘इस संशोधन ने परिवारों में दरारें पैदा की हैं और परिवारिक ढांचे को काफी नुकसान पहुंचाया है.’ कोर्ट ने कहा कि कानून बनाते या फैसला देते समय उसके वास्तविक प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए.



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