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बादशाह की बेटी रजिया ने जब खिड़की से लहराया दुपट्टा, कहा- ‘मैं महामहिम की औलाद, मुझे…’
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बादशाह की बेटी रजिया ने जब खिड़की से लहराया दुपट्टा, कहा- ‘मैं महामहिम की औलाद, मुझे…’

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इतिहास के पन्नों में पुरुष शासकों का काफी जिक्र है. उनके शासन संभालने को लेकर विस्तार से बताया गया है. चाहे वह अकबर हों, बाबर हों या जहांगीर. हालांकि, इस बीच हम आपको एक ऐसी महिला शासक के बारे में बताएंगे, जिसने अपनी काबिलियत के दम पर सत्ता पर अपना अधिकार जताया. ये कहानी है दिल्ली सल्तनत के शासक शम्सुद्दीन इल्तुतमिश की बेटी रजिया सुल्तान की, जिसका जन्म सन 1206 में हुआ था. उस समय चंगेज ख़ां की सेनाएं मध्य एशिया को तबाह कर रही थीं. इल्तुतमिश ने क़ुतुब मीनार का निर्माण पूरा करवाया और उन्हें न्यायप्रिय शासक माना गया. समकालीन इतिहासकार मिन्हाजुस सिराज जुजजानी ने उनकी प्रशंसा की. यात्री इब्नबतूता ने भी लिखा कि इल्तुतमिश ने अपने दरबार के बाहर न्याय का घंटा लगवाया था, जिसे बजाकर कोई भी पीड़ित अपनी समस्या सीधे सुल्तान तक पहुंचा सकता था.

इल्तुतमिश जब  बूढ़े हुए तो उन्होंने अपनी बेटी रजिया को उत्तराधिकारी चुना. उन्होंने कहा कि उनके बेटे शासन के योग्य नहीं हैं, लेकिन रजिया प्रशासन में सक्षम है. रजिया ने कई मौकों पर प्रशासनिक कामों को संभालकर अपनी क्षमता साबित की थी. इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद दरबारियों ने उनकी इच्छा के विरुद्ध उसके सौतेले भाई रुक्नुद्दीन फिरोज को सुल्तान बना दिया. फिरोज ने शासन की अनदेखी की और अय्याशी में डूब गया. उसकी मां शाह तुर्कन ने सत्ता अपने हाथ में ले ली और विरोधियों से बदला लेने लगी. इतिहासकारों के अनुसार, इस दौर में विद्रोह और अराजकता बढ़ गई.

रजिया का सत्ता पर अधिकार
कुप्रशासन से परेशान जनता और गवर्नरों ने विद्रोह कर दिया, जब फिरोज दिल्ली से बाहर गए तो रजिया ने जनता का समर्थन हासिल किया. विद्रोहियों ने शाह तुर्कन को पकड़ लिया और फिरोज की सत्ता पलट दी. इतिहासकार अब्दुल मलिक इसामी के अनुसार, रजिया ने खिड़की से दुपट्टा लहराते हुए कहा कि मैं महामहिम की बेटी हूं. मुझे ही उनका वारिस चुना गया था. कुछ समय के लिए ताज मुझे दीजिए, अगर मैं असफल रहूं तो गद्दी किसी और को दे देना. इस तरह नवंबर 1236 में रजिया दिल्ली की गद्दी पर बैठीं और भारत की पहली महिला शासक बनीं.

रजिया का महत्व और विरासत
रजिया ने पर्दा प्रथा तोड़कर खुले दरबार में शासन किया. उन्होंने महिलाओं की नेतृत्व क्षमता को स्थापित किया. हालांकि उनका शासन दरबारी षड्यंत्रों और पुरुष प्रधान समाज से जूझता रहा, फिर भी रजिया सुल्तान आज भी साहस और दृढ़ता की मिसाल मानी जाती हैं.

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