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‘एक दिन ताजमहल और लाल किले पर भी कर देंगे दावा’, वक्फ बोर्ड पर क्यों भड़का हाई कोर्ट?
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‘एक दिन ताजमहल और लाल किले पर भी कर देंगे दावा’, वक्फ बोर्ड पर क्यों भड़का हाई कोर्ट?

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केरल हाईकोर्ट ने मुनंबम वक्फ भूमि विवाद में शुक्रवार (10 अक्टूबर) को एक सख्त फैसले में चेतावनी दी कि संपत्ति को मनमाने ढंग से वक्फ घोषित करने को न्यायिक मंजूरी देना सही नहीं होगा. न्यायमूर्ति एस.ए. धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति श्याम कुमार वी.एम. की डिविजन बेंच ने कहा कि यदि ऐसे मनमाने ढंग से वक्फ घोषित किए गए निर्माणों पर न्यायिक मोहर लगाई गई तो किसी भी इमारत को वक्फ संपत्ति घोषित किया जा सकता है, चाहे वह ताजमहल, लाल किला, विधानमंडल भवन या यहां तक कि कोर्ट की अपनी इमारत ही क्यों न हो.

कोर्ट ने कहा, “यदि न्यायिक मंजूरी ऐसी मनमानी वक्फ घोषणा पर लगाई गई तो कल कोई भी यादृच्छिक भवन या संरचना- ताजमहल, लाल किला, विधानसभा भवन या यहां तक कि इस कोर्ट की इमारत भी वक्फ बोर्ड द्वारा किसी भी यादृच्छिक दस्तावेज के आधार पर वक्फ संपत्ति घोषित की जा सकती है.”

कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि वक्फ बोर्ड को मनमाने तरीके से कार्य करने की अनुमति देना संविधान द्वारा सुनिश्चित संपत्ति के अधिकार (धारा 300A), व्यापार करने के अधिकार (धारा 19) और जीवन व आजीविका के अधिकार (धारा 21) के लिए खतरा होगा.

कोर्ट ने कही ये बड़ी बात

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में संविधान के तहत काम करने वाली अदालत ऐसी विलंबित और काल्पनिक शक्तियों के प्रयोग की अनुमति नहीं दे सकती. वक्फ बोर्ड के पास इतनी असंगठित शक्ति की मौजूदगी को स्वीकार करना हर नागरिक को संविधान द्वारा दिए गए संपत्ति के अधिकार (धारा 300A) को खतरे में डाल देगा. यह व्यापार करने की स्वतंत्रता और जीवन, आजीविका के अधिकार (धारा 19 और 21) को मनमाने ढंग से वक्फ बोर्ड द्वारा संपत्ति के केवल घोषणा/पंजीकरण पर प्रभावित कर सकता है.”

याचिकाकर्ताओं का था ये दावा

याचिकाकर्ताओं का दावा था कि यह मामला वक्फ ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र में आता है, अदालत के नहीं, लेकिन हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह यह जांचने के लिए सक्षम है कि वक्फ घोषित करने की प्रक्रिया- सर्वेक्षण, सुनवाई और जांच न्यायसंगत और सही ढंग से की गई या नहीं. कोर्ट ने कहा, “किसी संपत्ति को वक्फ घोषित करने की प्रक्रिया सीधे तौर पर नागरिकों के मूल अधिकारों को प्रभावित करती है. इसलिए अदालत इस पर निगरानी रख सकती है.”

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