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करूर भगदड़ मामला: पीड़ित परिवार ने लगाया राजनीतिक दबाव का आरोप, SC ने कहा- सीबीआई को बताएं
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करूर भगदड़ मामला: पीड़ित परिवार ने लगाया राजनीतिक दबाव का आरोप, SC ने कहा- सीबीआई को बताएं

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सुप्रीम कोर्ट ने करूर भगदड़ कांड के पीड़ित एक परिवार से गुरुवार (31 अक्टूबर, 2025) को कहा कि वे अपने इस आरोप के साथ सीबीआई से संपर्क करें कि अधिकारियों ने उन्हें धमकी दी है. जस्टिस जे के माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की बेंच ने परिवार की ओर से अदालत में पेश हुए वकील की दलीलों पर गौर किया.

बेंच ने कहा, ‘यह दलील दी गई है कि याचिकाकर्ता को राज्य के अधिकारियों ने धमकाया और बहलाने-फुसलाने की कोशिश की है. हालांकि, इस संबंध में, यह कहना पर्याप्त है कि याचिकाकर्ता केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो में आवेदन कर सकता है.’

कोर्ट ने कहा, ‘फिलहाल, यह कहने के अलावा, अंतरिम आवेदनों पर कोई और आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं है.’ कोर्ट ने 13 अक्टूबर को करूर भगदड़ की सीबीआई जांच का आदेश दिया था, जिसमें 41 लोग मारे गए थे. अदालत ने कहा था कि इस घटना ने राष्ट्रीय चेतना को झकझोर दिया है और इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए.

एक्टर और नेता विजय की पार्टी तमिलगा वेत्री कझगम (TVK) की ओर से स्वतंत्र जांच के लिए दायर याचिका पर अपने आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच की निगरानी के लिए कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अजय रस्तोगी की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय पर्यवेक्षी समिति का गठन भी किया.

विशेष जांच दल (SIT) और एक सदस्यीय जांच आयोग की नियुक्ति के निर्देशों को स्थगित करते हुए, कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार से केंद्रीय एजेंसी के अधिकारियों के साथ पूर्ण सहयोग करने को कहा. कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एन सेंथिलकुमार की भी आलोचना की, जिन्होंने इस घटना से संबंधित याचिकाओं पर विचार किया, एसआईटी जांच का आदेश दिया और टीवीके और उसके सदस्यों को मामले में पक्षकार बनाए बिना उनके विरुद्ध टिप्पणियां कीं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 27 सितंबर को टीवीके रैली के दौरान हुई करूर भगदड़ ने पूरे देश के लोगों के मन में छाप छोड़ी है. कोर्ट ने कहा कि इस घटना का नागरिकों के जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ा है और जिन परिवारों ने अपने परिजनों को खोया है, उनके मौलिक अधिकारों को लागू करना अत्यंत महत्वपूर्ण है.

अदालत ने मामले के राजनीतिक निहितार्थ पर गौर किया और कहा कि ‘घटना की गंभीरता को ध्यान में रखे बिना’, शीर्ष पुलिस अधिकारियों की ओर से मीडिया के सामने की गई टिप्पणियां निष्पक्षता और निष्पक्ष जांच पर नागरिकों के मन में संदेह पैदा कर सकती हैं.



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