कर्नाटक हाई कोर्ट ने गुरुवार (25 सितंबर,2025) को जाति आधारित सर्वेक्षण के नाम से प्रचलित सामाजिक और शैक्षिक सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. राज्य सरकार को आंकड़ों की गोपनीयता बनाए रखने का निर्देश देते हुए न्यायालय ने यह भी कहा कि सर्वेक्षण स्वैच्छिक होना चाहिए. मुख्य न्यायाधीश विभु बाखरू और न्यायमूर्ति सी एम जोशी की खंडपीठ ने कहा कि उन्हें इस सर्वेक्षण पर रोक लगाने का कोई कारण नहीं दिखता.
क्या कहा पीठ ने?
पीठ ने कहा, ‘हम यह स्पष्ट करते हैं कि एकत्र किए गए आंकड़ों का खुलासा किसी के साथ नहीं किया जाएगा. कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (केएससीबीसी) यह सुनिश्चित करेगा कि आंकड़े पूरी तरह सुरक्षित और गोपनीय रहें.’ न्यायाधीशों ने केएससीबीसी को यह सार्वजनिक अधिसूचना जारी करने का भी निर्देश दिया कि यह सर्वेक्षण स्वैच्छिक है और किसी को भी कोई जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. अदालत ने कहा कि इस बात को गणना करने वालों को भी जनता को बताना होगा.
जातीय जनगणना का हो रहा विरोध
गौरतलब है कि कर्नाटक सरकार की ओर से की जा रही जातीय जनगणना का विरोध हो रहा है और आरोप लगाया जा रहा है कि इसका राजनीतिक फायदा उठाया जा सकता है. इस हफ्ते की शुरुआत में राज्य सरकार ने सर्वेक्षण का बचाव करते हुए कहा कि केंद्र सरकार इस मामले में दोहरा रवैया अपना रही है. 22 सितंबर से शुरू हुआ यह सर्वेक्षण सात अक्तूबर तक चलेगा. पहले दो दिन सर्वर और नेटवर्क की दिक्कतों के चलते कर्मचारियों को दिक्कत पेश आई थी.
अभिषेक मनु सिंघवी ने दी यह दलील
राज्य की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि केंद्र ने ही 2021 में 105वां संविधान संशोधन किया था, जिसके तहत राज्यों को पिछड़े वर्गों की पहचान और सूची बनाने का अधिकार वापस मिला. सिंघवी ने अदालत में कहा कि अब केंद्र केवल इसलिए याचिकाकर्ताओं का समर्थन कर रहा है क्योंकि राज्य में विपक्षी दल की सरकार है.


