जम्मू-कश्मीर में पूर्व अलगाववादी नेता बिलाल गनी लोन ने शनिवार (19 जुलाई) को कहा कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस अपनी अप्रासंगिकता के लिए खुद जिम्मेदार है और अब वह निष्क्रिय अवस्था में है. उन्होंने साथ ही जम्मू-कश्मीर में गड़बड़ी और दरार पैदा करने के लिए पाकिस्तान की भी आलोचना की. लोन की टिप्पणी पारंपरिक अलगाववादी रुख से अलग है, जिसमें उन्होंने स्वीकार किया कि हुर्रियत और पाकिस्तान दोनों ने क्षेत्र में प्रगति लाने के अवसरों को गंवा दिया है.
पूर्व अलगाववादी के मुताबिक, मुख्यधारा की राजनीति में आने के पीछे की मुख्य प्रेरणा अगली पीढ़ी है. उन्होंने युवा पीढ़ी से इस वास्तविकता को स्वीकार करने का आग्रह किया कि “भारत बहुत बड़ी शक्ति है, जिससे लड़ना संभव नहीं है.” लोन ने युवाओं को सलाह दी कि वे देश को राजनीतिक दलों के चश्मे से न देखें, बल्कि देश के भीतर अपने लिए जगह बनाने के लिए भारत को भारत के रूप में देखें.
लोगों ने हुर्रियत पर जताया था भरोसा, लेकिन मौजूदा सच्चाई उससे अलग- लोन
लोन ने कहा, “वर्तमान पीढ़ी को पिछले 35 वर्षों के बारे में सच्चाई बताई जानी चाहिए क्योंकि उनके पास इस नए राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है, क्योंकि शोषण की राजनीति को रोकना होगा. लोन ने पीटीआई वीडियो से विशेष बातचीत में कहा कि 1993 में गठित अलगाववादी संगठन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने घाटी में अपनी प्रासंगिकता खो दी है.
उन्होंने कहा, ‘‘आज की तारीख में हुर्रियत प्रासंगिक नहीं है. हुर्रियत सक्रिय भी नहीं है. ईमानदारी से कहें तो, जब आप आज की तारीख में हुर्रियत की बात करते हैं, तो वह कश्मीर में कहीं भी मौजूद नहीं है.’’ उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि लोगों ने अतीत में हुर्रियत पर अपना भरोसा जताया था, लेकिन मौजूदा सच्चाई उससे अलग है.
उन्होंने कहा, ‘‘हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने अपनी प्रासंगिकता खो दी है क्योंकि हम कदम नहीं उठा सके. उस समय हुर्रियत की अवधारणा अच्छी रही होगी. लेकिन जब हम आज हुर्रियत को देखते हैं, तो वह सक्रिय नहीं दिखती और कहीं न कहीं हुर्रियत लड़खड़ा गई है, इसमें कोई संदेह नहीं है.’’
कश्मीर को लेकर की पाकिस्तान की भूमिका की आलोचना
बिलाल गनी लोन ने पाकिस्तान की भूमिका की भी समान रूप से आलोचना की और कहा, ‘‘हमने कई बयान सुने हैं, लेकिन इनसे से कुछ भी नहीं निकला है. पाकिस्तान को कश्मीर में दरार पैदा करने के बजाए यहां हालात को बेहतर बनाने में मदद करनी चाहिए.’’ उन्होंने इस विचार को भी खारिज किया कि पाकिस्तान कभी बलपूर्वक कश्मीर हासिल कर लेगा. उन्होंने इसे बेहद मूर्खतापूर्ण विचार बताया.
लोन ने अपनी बात स्पष्ट करने के लिए हाल ही में सीमा पर बढ़े तनाव का उदाहरण दिया, जिसमें 48 घंटे तक युद्ध जैसी स्थिति रही. उन्होंने कहा, ‘‘सीमा पर एक इंच भी बदलाव नहीं हुआ.’’ उन्होंने कहा कि कश्मीरियों को अब आगे बढ़ना होगा. हमें इस उलझन से बाहर निकलना होगा, चाहे वह पाकिस्तान के साथ हो या उसके बिना, हमें इससे बाहर निकलना होगा.’’
लोन ने अलगाववादी आंदोलन की हार पर जताया खेद
लोन ने अलगाववादी आंदोलन की विफलताओं पर गहरा खेद व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘हुर्रियत कॉन्फ्रेंस को बहुत सारे अवसर मिले थे, हम कहीं न कहीं चूक गए. हम अपने लोगों के लिए कुछ कर सकते थे, लेकिन हम ऐसा नहीं कर सके. यही वास्तविकता है, इसके बारे में ईमानदार रहें.’’
पूर्व अलगाववादी ने अतीत की असफलताओं को स्पष्ट रूप से स्वीकार करते हुए कहा, “मुख्यधारा की राजनीति की ओर उनका झुकाव राजनीतिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि एक वास्तविक राजनीतिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के व्यक्तिगत दृढ़ विश्वास के कारण है.” उन्होंने अपनी जीवन यात्रा पर कहा, ‘‘मुझे दूसरे पाले में रहने का कोई अफसोस नहीं है, लेकिन एकमात्र अफसोस, जो बहुत बड़ा है, वह यह है कि हम कुछ नहीं कर सके. बहुत कुछ किया जा सकता था, लेकिन हम नहीं कर सके.’’ उन्होंने अपने हृदय परिवर्तन को एक हिंदी कहावत के साथ संक्षेप में प्रस्तुत किया, ‘‘देर आए दुरुस्त आए.’’
सीएम या विधायक पद की दौड़ में नहीं हूं- लोन
अलगाववादी राजनीति से मुख्यधारा की राजनीति में आने के अपने कदम पर लोन ने कहा कि वह मुख्यमंत्री या विधायक जैसे किसी पद की दौड़ में नहीं हैं, बल्कि अपने लोगों का कर्ज चुकाने की इच्छा से प्रेरित हैं. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि मुझे कर्ज चुकाना होगा. इसलिए मेरे लिए यह कर्ज चुकाने का समय है.
उन्होंने कहा, “लोगों के लिए उनका नया राजनीतिक विमर्श सड़क, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं से आगे बढ़कर नई पीढ़ी के भविष्य पर केंद्रित होगा. हमें उनके भविष्य के बारे में बात करनी होगी, जिसमें उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं और व्यवसाय स्थापित करने की संभावनाएं शामिल हैं.’’
राजनीतिक दलों के चश्मे से भारत को न देखें कश्मीरी- लोन
उन्होंने रेखांकित किया कि उनकी नई राजनीतिक यात्रा की मूल प्रेरणा अगली पीढ़ी है. उन्होंने कहा, ‘‘हिंसा ने हमें कुछ नहीं दिया. हिंसा यहां केवल विनाश ही लेकर आई है. इसने पीढ़ियों को खत्म कर दिया है. आज कश्मीरी कहीं नहीं हैं और वे उत्पीड़न का शिकार हैं, जिसके लिए वह सालों से जारी हिंसा को जिम्मेदार मानते हैं.”
उन्होंने लोगों से अपील की कि वे भारत को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) या कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों के नजरिए से न देखें, बल्कि भारत को भारत के रूप में देखें और अपने लिए उसमें जगह तलाशने का प्रयास करें.’’ पूर्व अलगाववादी ने कहा कि जिन लोगों ने भारत को हराने की कोशिश की है, वे बुरी तरह विफल हुए हैं और लोगों को अब इस वास्तविकता को स्वीकार करना होगा.
370 का हटना कश्मीरियों के लिए मनोवैज्ञानिक जीत- लोन
लोन ने अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद की स्थिति का प्रत्यक्ष आकलन करते हुए कहा, “हालांकि, यह प्रावधान राजनीतिक रूप से खोखला हो सकता है, लेकिन यह कश्मीरियों के लिए एक मनोवैज्ञानिक जीत है. भाजपा सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाकर भले ही एक सैन्य युद्ध जीत लिया हो, लेकिन लोगों को नियंत्रित और दबा हुआ महसूस कराकर कश्मीरियों को खो दिया है.”
लोन ने हालांकि तुरंत कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सलाह देने के लिए बहुत छोटे आदमी हैं. उन्होंने केंद्र सरकार से कश्मीरियों को गले लगाने और इस क्षेत्र को वोट बैंक के चश्मे से न देखने का आग्रह किया. उन्होंने कहा, “सरकार को आकर कश्मीर को खुद महसूस करना चाहिए और लोगों को सुखद अनुभव प्रदान करना चाहिए.” लोन के मुताबिक, सरकार को राजनीतिक दलों से परे भी लोगों की बात सुननी चाहिए.
कश्मीर में सबसे बड़ी क्षति विश्वास की हुई- लोन
लोन ने सुरक्षा के बारे में कहा कि स्थिति प्रथम श्रेणी की है, लेकिन इसे डंडे के बल से बनाए रखा जा रहा है. उन्होंने जोर देकर कहा कि कश्मीर में सबसे बड़ी क्षति विश्वास की हुई है.
उन्होंने कहा कि मेल-मिलाप की प्रक्रिया देशों के बीच नहीं, बल्कि उनके अपने लोगों के बीच शुरू होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी के साथ ईमानदारी का एक नया अध्याय शुरू किया जाना चाहिए, जो अतीत से अनभिज्ञ है.
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