दिल्ली में सुसाइड बॉम्ब ब्लास्ट करने वाला डॉ. उमर नबी इसे शहादत मानता था, जबकि हकीकत इससे कौसों दूर है. दुनियाभर में आंतकवादी संगठन सुसाइड बॉम्बर यानी फिदायीन को सबसे अच्छा मानते हैं, क्योंकि इसमें न हींग लगती है, न फिटकरी और रंग भी चोखा आता है. क्योंकि यह बॉम्बर सरगनाओं के सगे-संबंधी नहीं होते. यह तो आम लोग होते हैं, जिनका ब्रेन वॉश करके, जन्नत और हूरों के ख्वाब दिखाकर तैयार किया जाता है. जबकि इस्लाम में खुदकुशी हराम है. सुसाइड बॉम्बिंग कोई नई बात नहीं, बल्कि 150 साल से चली आ रही है. ABP एक्सप्लेनर में समझते हैं कि सुसाइड बॉम्ब अटैक की शुरुआत कब हुई, इस्लाम में सुसाइड हराम होने के बावजूद मुसलमान फिदायीन क्यों बनते और इसकी ट्रेनिंग कैसे होती है…
सवाल 1- दुनिया में पहला सुसाइड बॉम्ब अटैक कब हुआ और इसकी शुरुआत कैसे हुई थी?
जवाब- 1881 की बात है… जब दुनिया का पहला सुसाइड बॉम्ब अटैक हुआ. रूसी क्रांतिकारी ग्रुप ‘नारोदनाया वोल्या‘ तत्कालीन राजा जार एलेक्सेंडर II की जान के पीछे पड़े थे. लेकिन मारने का मौका नहीं मिल रहा था. फिर 13 मार्च को सेंट पीटर्सबर्ग में इग्नाटी ग्रिनेविट्सकी ने मौका पाकर जार की गाड़ी पर बॉम्ब फेंका. पहला बॉम्ब फटने से जार घायल हुए, तब ग्रिनेविट्स्की खुद दौड़कर गए और उनके पैरों के पास दूसरा बॉम्ब फेंककर खुद को भी मार डाला. दोनों की मौत हो गई.
यह डायनामाइट का इस्तेमाल करने वाला पहला सुसाइड अटैक था. उस समय यह राजनीतिक क्रांति के लिए था. हमलावर ईसाई समुदाय थे.
वहीं कुछ लोग 11वीं-13वीं शताब्दी में प्राचीन यहूदी ग्रुप ‘सिकारी‘ या ‘असासिन्स‘ को सुसाइड बॉम्ब की शुरुआत मानते हैं, क्योंकि वह दुश्मन को छुरा घोंपकर मार देते थे, यह जानते हुए भी कि उनकी भी मौत हो जाएगी.
बहरहाल, 1881 में रूस के पहले सुसाइड बॉम्बर के बाद से अब तक 72,000 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और इससे दोगुने घायल हुए. जितने हमलावरों की पहचान हुई, उनमें 90% से ज्यादा पुरुष थे. इसके बाद सुसाइड बॉम्बिंग का सिलसिला चल पड़ा…
- वर्ल्ड वॉर II के दौरान जापान ने एक स्पेशल अटैक टीम बनाई थी, जिसका नाम ‘कामिकाजे‘ था. कामिकाजे पायलट विस्फोटकों से भरे हवाई जहाज को समुद्र में दुश्मनों के जहाजों पर क्रैश कर देते थे. जापानी सेना सरेंडर करने को बेइज्जती और सुसाइड बॉम्बिंग को शहादत समझती थी. युद्ध के दौरान जापान ने करीब 3,860 सुसाइड अटैक किए.
- अलग तमिल राज्य की चाह में श्रीलंका में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलन (LTTE) बना. इसके लड़ाकों ने हिजबुल्लाह से ट्रेनिंग ली थी. LTTE ने ही 1991 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और श्रीलंका के प्रधानमंत्री रणसिंघे प्रेमदासा की हत्या की थी. लिट्टे हिंदू थे.
- अलकायदा के 19 आतंकियों ने 4 कमर्शियल फ्लाइट्स हाईजैक की, जिसमें से दो को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और पेंटागन में क्रैश कर दिया. एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 में ISIS इराक में हर महीने औसतन 20 सुसाइड अटैक करता है.
- इराक में ISIS की सुसाइड बॉम्बिंग के बाद अफगानिस्तान में तालिबान ने भी विरोध के इस तरीके को अपना लिया. 2001 में अमेरिकी सेना के घुसपैठ का विरोध करने के लिए इसी तरीके का इस्तेमाल हुआ.
सवाल 2- कोई इंसान खुद ही अपनी जान लेने के लिए कैसे तैयार हो जाता है?
जवाब- ऑस्ट्रेलियन आर्मी रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक, सुसाइड बॉम्बर बनना कोई अचानक वाली बात नहीं होती. यह हमास, हिजबुल्लाह, ISIS और तालिबान जैसे आतंकवादी संगठन बहुत सोच-समझकर लोगों को चुनते हैं और फिर उन्हें धीरे-धीरे तैयार करते हैं. ज्यादातर बॉम्बर्स नॉर्मल इंसान होते हैं. न गरीब, न पागल और न डिप्रेस्ड. कई तो पढ़े-लिखे और मिडिल क्लास फैमिली से होते हैं. लेकिन संगठन उनका ब्रेनवॉश करके यह भरोसा दिलाते हैं कि खुद को मारना शहादत है, जो स्वर्ग ले जाएगा और फैमिली को सम्मान या पैसे मिलेंगे.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली ब्लास्ट केस से जुड़े आतंकियों को पाकिस्तान से संचालित होने वाले ग्रुप्स के जरिए कट्टरपंथी बनाया गया था.
सवाल 3- इस्लाम में सुसाइड हराम होने के बावजूद मुसलमान सुसाइड बॉम्बर क्यों?
जवाब- कुरान शरीफ की चौथी सूराह ‘अल-निसा‘ की आयत 30 के मुताबिक, ‘और अपने आप को न मारो. बेशक अल्लाह तुम पर रहम करने वाला है.’
यानी कुरान सुसाइड को सही नहीं मानता. इसके बावजूद सुसाइड अटैक करने वाले कट्टरपंथी मुसलमान यह काम अल्लाह के नाम पर करने का ही दावा करते हैं. वहीं, हदीस ‘बुखारी शरीफ’ की रिवायत है कि पैगम्बर मोहम्मद साहब ने फरमाया, ‘जो शख्स खुद को किसी भी तरीके से मार लेगा, चाहे जहर से, तलवार से या ऊंचाई से कूदकर, उसको कयामत के दिन उसी तरीके से बार-बार अजाब दिया जाएगा.’
- मिस्र में दुनिया का सबसे बड़ा इस्लामिक एजुकेशनल इंस्टीट्यूट ‘अल-अजहर यूनिवर्सिटी’ के मुताबिक, ‘सुसाइड बॉम्बिंग हराम है, चाहे किसी भी तरह से की गई है’.
- ईराक में शिया के सबसे बड़े मरजा आयतुल्लाह अली सिस्तानी कहते हैं, ‘खुद को विस्फोट से मारना हराम है.’
- सऊदी अरब की स्थायी फतवा कमेटी का कहना है, ‘सुसाइड बॉम्बिंग कुफ्र है’.
चाहे शिया हों या सुन्नी, सभी इस पर एकमत हैं कि सुसाइड करने वाला जहन्नमी है, उसे जन्नत नहीं मिलेगी. दरअसल, आतंकी संगठन कुरान शरीफ की दूसरी सूराह ‘अल-बक्र‘ की आयत 154 का हवाला देते हैं, जिसमें लिखा है, ‘जो अल्लाह के रास्ते में मारे गए, उनके बारे में ये न कहो कि वो तो मर गए, बल्कि वो तो जिंदा हैं, पर तुम उन्हें जानते नहीं.’
वह फिदायीन को सुसाइड बॉम्बिंग नहीं मानते, बल्कि शहादत कहते हैं. उनका तर्क होता है कि हम मरने के इरादे से नहीं जा रहे, बल्कि दुश्मन को मारने के इरादे से जा रहे हैं और अगर रास्ते में मौत हो जाए तो वो शहादत है. जैसे पुराने जिहाद में सहाबा लड़ते-लड़ते शहीद हो जाते थे.
ज्यादातर सुसाइड बॉम्बर नौजवान लड़के होते हैं जिनके किसी अपने को दुश्मन ने मारा होता है. संगठन वाले उन्हें महीनों ब्रेनवॉश करते हैं, रोज वीडियो दिखाते हैं और कहते हैं तुम शहीद बनोगे, जन्नत मिलेगी, तुम्हारा खानदान स्वर्ग जाएगा. गुस्सा और जोश में लड़का ये भूल जाता है कि असल इस्लाम क्या कहता है. वो सोचता है कि ये अल्लाह का काम है.
सवाल 4- क्या भारत में दिल्ली ब्लास्ट किसी बड़े फिदायीन हमले की चेतावनी था?
जवाब- दिल्ली में इससे पहले 2005 और 2008 में सीरियल बम ब्लास्ट हुए थे. दोनों हमलों में कुल मिलाकर करीब 100 लोग मारे गए और 300 से ज्यादा घायल हुए. अब पहली बार देश की राजधानी में कोई सुसाइड अटैक हुआ है. इतना ही नहीं, दिल्ली ब्लास्ट के तार जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तान से जैश के हैंडलर हंजुल्ला ने दिल्ली धमाके के आरोपी डॉ. मुजम्मिल शकील गनई को बम बनाने के 40 वीडियो भेजे थे.
जांच और सुरक्षा एजेंसियों को अब तक 32 जगह धमाके की प्लानिंग के बारे में पता चला था. लेकिन फरीदाबाद से 2900 किलोग्राम अमोनियम नाइट्रेट जब्त होने के बाद सिर्फ दिल्ली में धमाका हुआ. अगर फिदायीन हमला कामयाब हो जाता, तो हजारों लोगों की जानें चली जातीं. एजेंसियां इस मामले की सारी परतें खोल रहीं हैं. दिल्ली, यूपी, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा और राजस्थान समेत कई जगहों पर छापेमारी हो रही है.
सवाल 5- तो फिर सुसाइड बॉम्बर के बनने और ऐसे हमलों को रोकने के लिए क्या करना होगा?
जवाब- सुसाइड बॉम्बिंग को पूरी तरह रोकना बहुत मुश्किल है, लेकिन दुनिया के कई देशों ने इसे बहुत हद तक कम कर दिया है…
- सुसाइड बॉम्बर का 70-80% काम ब्रेनवॉश से होता है. इसे रोकने के लिए बड़े उलेमाओं से लगातार फतवे दिलवाए जाएं कि सुसाइड बॉम्बिंग हारम है. 2018 में 1,800 से ज्यादा मौलवियों ने फतवा दिया था कि सुसाइड हराम है.
- गरीब इलाकों में नौकरी, पढ़ाई, खेलकूद के प्रोग्राम चलाना चाहिए. सऊदी अरब ने अपना डी-रेडिकलाइजेशन प्रोग्राम चलाया, जो जिहादी पकड़े जाते हैं उन्हें नौकरी, शादी और पैसे देते हैं. 85% लोग दोबारा जिहाद में नहीं गए.
- इस्लामिक इंस्टीट्यूट्स में सही इस्लाम सिखाना चाहिए कि सुसाइड हराम है. इंडोनेशिया ने यह किया, दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम देश होने के बावजूद वहां सुसाइड बॉम्बिंग लगभग खत्म है.
एक्सपर्ट्स कहते हैं, ‘सुसाइड बॉम्बिंग को रोकने का एक ही फॉर्मूला है कि ब्रेनवॉश करने वालों को चुप कराओ, पैसे का फ्लो बंद करो, हैंडलर को मारो या पकड़ो और नौजवानों को अच्छी जिंदगी दो. सिर्फ बॉर्डर पर दीवार या आर्मी से ये नहीं रुकता, दिमाग की लड़ाई है. यह तरीके अपनाने से 5-10 साल में 90% तक कम हो सकता है, जैसा कई देशों में हो चुका है.‘


