केंद्र सरकार ने संसद में स्पष्ट कर दिया है कि संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्दों को हटाने या उन पर दोबारा विचार करने की कोई योजना नहीं है. राज्यसभा में एक लिखित जवाब में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि इन शब्दों को हटाने को लेकर न तो कोई संवैधानिक प्रक्रिया शुरू की गई है और न ही ऐसा कोई सरकारी इरादा है.
अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि भले ही कुछ राजनीतिक या सामाजिक हलकों में इस पर बहस हो रही हो, लेकिन सरकार की तरफ से इस संबंध में कोई औपचारिक फैसला या प्रस्ताव नहीं लाया गया है. बता दें कि ये दोनों शब्द 1976 में आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए थे.
केंद्रीय मंत्री बोले- कुछ समूहों की मांग
मंत्री ने बताया कि कुछ सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों या समूहों ने इन शब्दों को हटाने की मांग उठाई है और इस पर चर्चा भी हो रही है. लेकिन यह मांग सरकार की आधिकारिक नीति या निर्णय को नहीं दर्शाती.
सरकार ने कोई औपचारिक कदम नहीं उठाया
मेघवाल ने स्पष्ट किया कि सरकार ने अभी तक ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्दों को हटाने के लिए कोई कानूनी या संवैधानिक प्रक्रिया शुरू नहीं की है. यह केवल कुछ राजनीतिक या सार्वजनिक चर्चाओं का हिस्सा है.
RSS के नेता का बयान
यह बयान ऐसे समय में आया है जब एक महीने पहले RSS के जनरल सेक्रेटरी दत्तात्रेय होसबाले ने कहा था कि आपातकाल के दौरान प्रस्तावना में जोड़े गए ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्दों पर चर्चा जरूरी है.
सरकार का रुख स्पष्ट
मेघवाल ने कहा कि सामाजिक संगठनों द्वारा बनाए गए माहौल और सरकार का रुख अलग है. सरकार इस मामले में कोई बदलाव नहीं कर रही है और न ही कोई प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया है. इस तरह सरकार ने इस संवेदनशील मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है.