9 अक्टूबर को बिहार में तेजस्वी यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए एक नया चुनावी वादा किया. उन्होंने कहा, ‘सरकार बनते ही हर एक परिवार में एक सरकारी नौकरी दी जाएगी. हम जो घोषणा कर रहे हैं, उसपर बहुत लोगों का सवाल होगा कि कैसे देंगे? हमने सारा डेटा निकाला है. सभी सर्वे हमने करा लिया है और मेरा प्रण है ये और जो हो सकता है वही हम करेंगे.’
तो आइए ABP एक्सप्लेनर में समझते हैं कि क्या हर एक परिवार में एक सरकारी नौकरी मिलेगी, तेजस्वी के वादे में कितनी सच्चाई और इसे पूरा करना मुमकिन है या नहीं…
सवाल 1- तेजस्वी यादव का ‘हर घर जॉब’ का वादा क्या है?
जवाब- तेजस्वी यादव ने कहा, ‘बिहार में अब नौकरी का नवजागरण होगा. बिहार के जिस भी परिवार के पास सरकारी नौकरी नहीं है, ऐसे हर परिवार को एक नया अधिनियम बनाकर अनिवार्य रूप से नौकरी दी जाएगी. सरकार बनते ही 20 दिन में अधिनियम बनाएंगे और 20 महीने के अंदर ऐसा बिहार का कोई घर नहीं बचेगा जिसके पास सरकारी नौकरी नहीं होगी.’
उन्होंने आगे कहा, ‘अब हम हर घर को जॉब देंगे. जीत का जश्न हर घर में सरकारी नौकरी और बिहार में उद्योग लगाकर, एजुकेशनल सिटी स्थापित करके, IT पार्क लगाकर, कृषि और डेयरी आधारित उद्योग को बढ़ावा देकर बिहार को विकास के नए पथ पर आगे बढ़ाने के रूप में किया जाएगा.’
तेजस्वी ने दावा किया, ‘अब सिर्फ एक या दो लोग या पार्टियां नहीं, बल्कि पूरा बिहार सरकार चलाएगी. हर परिवार से एक व्यक्ति सरकारी नौकरी में होगा, तो हर परिवार की सरकार में सीधी भागीदारी होगी.’
सवाल 2- क्या तेजस्वी का ‘हर घर जॉब’ का वादा खोखला है, अगर हां तो कैसे?
जवाब- पॉलिटिकल एक्सपर्ट हर्षवर्धन त्रिपाठी कहते हैं, ‘बिहार में हर घर सरकारी नौकरी देना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. यह सिर्फ चुनावी वादा है, जो पूरी तरह खोखला है. किसी भी राज्य या देश में सरकारी नौकरी बेरोजगारी की वजह से नहीं निकलती, बल्कि सरकारी कामों को पूरा करने के लिए निकलती है.’
दरअसल, 2023 के बिहार जातिगत सर्वे के मुताबिक, राज्य में 13.07 करोड़ जनसंख्या है. इसमें परिवारों का डेटा जारी नहीं होता. लेकिन पीरियडिक लेबर फोर्स सर्वे यानी PLFS के कैलकुलेशन के मुताबिक, बिहार में औसतन एक परिवार में 5 सदस्य हैं. यह राष्ट्रीय औसत 4.4 से थोड़ा ज्यादा है, क्योंकि बिहार ग्रामीण-प्रधान है. यानी बिहार में करीब 2.62 करोड़ परिवार रहते हैं.
RBI की स्टेट फाइनेंस रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में करीब 15-18 लाख सरकारी नौकरियां हैं, जो राज्य सरकार, स्थानीय निकाय, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे विभागों में हैं.
हर्षवर्धन त्रिपाठी कहते हैं, ‘अगर मान लें कि 15 से 18 लाख सरकारी नौकरियों वाले सभी परिवार अलग हैं, तो सिर्फ 6-7% परिवार ही सरकारी नौकरी से जुड़े हैं. बाकी के करीब 2.44 करोड़ यानी 93 से 94% परिवारों के पास कोई सरकारी नौकरी नहीं है. पूरे देश में ही करीब 2 करोड़ सरकारी नौकरियां हैं. यानी तेजस्वी पूरे देश से ज्यादा सरकारी नौकरी सिर्फ अकेले बिहार में देना चाहते हैं.’
वहीं, इलेक्शन एनालिस्ट अमिताभ तिवारी कहते हैं, ‘बिहार में हर परिवार में 1 ही सरकारी नौकरी देने के लिए सरकार के पास बजट भी नहीं है. मान लें अगर 1 नौकरी की सैलरी 30 हजार रुपए महीना है, तो 2.44 करोड़ नौकरियों का सालाना बजट करीब 7.3 लाख करोड़ होना चाहिए, जो बिहार के 3.17 लाख करोड़ के बजट से दोगुना है. यानी सरकारी नौकरी देने के लिए राज्य का पूरा बजट खर्च कर दिया, तो भी कम पड़ेगा.’
सवाल 3- तो क्या बिहार में रोजगार अवसर से तेजस्वी का वादा कवर अप होगा?
जवाब: पीरियडिक लेबर फोर्स सर्वे यानी PLFS की 2023-24 रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में 15 साल से ज्यादा उम्र के युवाओं में बेरोजगारी दर 3.2% है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 2025 में बिहार से करीब 2.6 लाख लोग जॉब के लिए पलायन कर गए. अगर तेजस्वी सिर्फ इतने ही लोगों को सरकारी नौकरी या रोजगार दिलवा दें, तो भी बड़ी बात है.
अमिताभ तिवारी कहते हैं, ‘बिहार में रोजगार देना इतनी ही आसान बात होती, तो राज्य के युवा नौकरी करने के लिए प्रदेश से बाहर नहीं जाते. रोजगार के अवसर देने के लिए राज्य में नए स्टार्टअप्स शुरू करने होंगे, नई कंपनियां खुलेंगी और लघु उद्योगों का सहारा लेना होगा. यह काम सरकार नहीं कर पाएगी. इसके लिए प्राइवेट कंपनियों को आगे आना होगा. अब यह सुनने में तो आसान लगता है, लेकिन यह भी बहुत मुश्किल है. प्राइवेट सेक्टर्स भी बिहार में तब ही इन्वेस्ट करेंगे, जब उनका फायदा होगा.’


