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बिहार चुनाव 2025 में चाचा नीतीश पड़ेंगे भारी या भतीजे तेजस्वी मारेंगे बाजी, सामने आई बड़ी भविष्
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बिहार चुनाव 2025 में चाचा नीतीश पड़ेंगे भारी या भतीजे तेजस्वी मारेंगे बाजी, सामने आई बड़ी भविष्

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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे पास आ रहा है, राजनीतिक माहौल फिर से दो प्रमुख चेहरों नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के इर्द-गिर्द घूमने लगा है. वरिष्ठ पत्रकार संजीव पांडेय ने बड़ी भविष्यवाणी करते हुए एक शो में कहा कि दोनों नेता अपने-अपने समर्थन आधार को मजबूती से थामे हुए हैं. उन्होंने कहा कि नीतीश अभी भी अनुभव और संगठन के सहारे मैदान में हैं, जबकि तेजस्वी ने युवाओं में नई ऊर्जा भर दी है. संजीव पांडेय के मुताबिक तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार की नीतियों को खारिज करने की बजाय उन्हें और मजबूत करने की रणनीति अपनाई है.

उनका कहना है कि तेजस्वी ने महिला सशक्तिकरण और जीविका जैसी योजनाओं को जारी रखते हुए महिलाओं को स्थायी भत्ता और संविदा कर्मियों को स्थायी करने का वादा किया है. इस रणनीति से तेजस्वी ने युवा और महिला दोनों वर्गों में विश्वास बढ़ाया है.

महिला मतदाता नीतीश कुमार की सबसे बड़ी ताकत

2005 से लेकर 2020 तक महिला मतदाता नीतीश कुमार की सबसे बड़ी ताकत मानी जाती थीं. शराबबंदी और पंचायती आरक्षण जैसी योजनाओं ने उन्हें महिलाओं के मसीहा के रूप में स्थापित किया, लेकिन अब समीकरण बदलते दिख रहे हैं. संजीव पांडेय का मानना है कि शराबबंदी का असर कमजोर हुआ है और तेजस्वी की नकद सहायता योजनाओं ने महिलाओं को नया विकल्प दिया है. यह नीतीश के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगा सकता है.

एनडीए में नीतीश फैक्टर अब भी जिंदा

बीते कुछ समय में यह अटकलें तेज थीं कि नीतीश कुमार अब एनडीए में हाशिए पर जा सकते हैं, लेकिन पांडेय का विश्लेषण कहता है कि नीतीश न थके हैं न रिटायर हुए हैं. उनका कोर वोट बैंक अब भी उनके साथ है और उनका राजनीतिक अनुभव उन्हें अप्रत्याशित बना देता है. उन्होंने जोड़ा कि बीजेपी और जेडीयू के बीच मतभेदों के बावजूद नीतीश की भूमिका निर्णायक बनी हुई है.

जंगल राज बनाम रोजगार राज नई पीढ़ी का फोकस बदल गया

संजीव पांडेय ने कहा कि आज का युवा लालू यादव के दौर की घटनाएं नहीं, बेरोजगारी और पलायन की सच्चाई देखता है. पुरानी पीढ़ी जहां जंगल राज को याद करती है, वहीं नई पीढ़ी नौकरी को मुद्दा बना रही है. उन्होंने यह भी कहा कि 18 से 30 साल की उम्र के मतदाता अब जातीय पहचान से ज्यादा आर्थिक अवसरों को प्राथमिकता दे रहे हैं.

रोजगार और पलायन चुनावी चर्चा का असली केंद्र

बिहार में बेरोजगारी का संकट लगातार चुनावी मुद्दा बना हुआ है. संजीव पांडेय ने कहा कि बिहार में संविदा कर्मियों को 6,000–8,000 मिलते हैं, जबकि दक्षिण भारत में वही काम 18,000 में होता है. ऐसे में युवा बदलाव की उम्मीद कर रहा है. उन्होंने बताया कि तेजस्वी यादव इसी भावना को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं जंगल राज की जगह रोजगार राज का नारा देकर.

आरजेडी की नई सोशल इंजीनियरिंग

तेजस्वी यादव ने इस बार टिकट बंटवारे में भूमिहार, अति पिछड़ा और दलित वर्ग के उम्मीदवारों को शामिल किया है. संजीव पांडेय के अनुसार यह कदम यह संदेश देता है कि आरजेडी अब केवल यादव-मुस्लिम पार्टी नहीं रह गई. यह बदलाव आरजेडी की छवि को व्यापक बनाता है और महागठबंधन को सामाजिक रूप से संतुलित दिखाने की कोशिश करता है.

सर्वे रिपोर्ट में तेजस्वी आगे लेकिन मुकाबला अब भी खुला

नए सर्वेक्षणों के अनुसार मुख्यमंत्री पद के लिए जनता की पहली पसंद तेजस्वी यादव हैं. संजीव पांडेय ने बताया कि करीब 31–32% लोग तेजस्वी को पसंद करते हैं, जबकि नीतीश कुमार को लगभग 12–13% समर्थन प्राप्त है. हालांकि उन्होंने चेताया कि लोकप्रियता और परिणाम दो अलग बातें हैं. बिहार में जाति, महिला वोट और स्थानीय प्रत्याशी की छवि कई बार पूरी तस्वीर बदल देते हैं.

ये भी पढ़ें: ‘हर घर एक नौकरी देने का वादा छलावा…’, बिहार में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने RJD पर साधा निशाना



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