जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव ने अब गंगा नदी के स्रोत ग्लेशियरों को भी गंभीर रूप से प्रभावित करना शुरू कर दिया है. वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान की ओर से किए गए 51 साल (1973-2024) के लंबे समय के स्टडी में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. स्टडी के अनुसार भागीरथी बेसिन के ग्लेशियरों की न सिर्फ लंबाई घट रही है, बल्कि उनकी मोटाई में भी लगातार कमी दर्ज की जा रही है. यह स्थिति भविष्य में गंगा की जलधारा और पारिस्थितिक संतुलन के लिए गंभीर खतरे का संकेत है.
अंतरराष्ट्रीय शोध जर्नल रिजल्ट्स इन अर्थ साइंसेज में प्रकाशित इस स्टडी में वैज्ञानिकों ने पहली बार भागीरथी घाटी के प्रमुख ग्लेशियरों की मोटाई में आए बदलावों का विश्लेषण किया. शोध में वर्ष 1973 से 2024 के बीच के आंकड़ों का तुलनात्मक स्टडी किया गया. इसमें पाया गया कि वर्ष 1973 से 2000 के बीच गंगोत्री ग्लेशियर के अंतिम सिरे गोमुख क्षेत्र में बर्फ की मोटाई में कमी की दर लगभग 0.10 मीटर प्रति वर्ष थी, जो अपेक्षाकृत धीमी थी. 2000 के बाद से यह दर तेजी से बढ़ी है. इससे संकेत मिलता है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अब पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है,
भू-विज्ञान वैज्ञानिक का बयान
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राकेश भांबरी ने बताया, ”यह स्टडी हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियरों के द्रव्यमान असंतुलन को समझने के लिहाज से बेहद अहम है.” उन्होंने कहा कि ग्लेशियरों की घटती मोटाई का सीधा संबंध औसत तापमान में वृद्धि और वर्षा के पैटर्न में बदलाव से है. ये दोनों कारक ग्लेशियर पिघलने की दर को बढ़ा रहे हैं, जिससे न केवल गंगा जैसी प्रमुख नदियों की जलापूर्ति प्रभावित हो रही है, बल्कि क्षेत्र के पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता पर भी खतरा मंडरा रहा है.
यूके के वैज्ञानिकों ने भी किया सहयोग
स्टडी में पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय बठिंडा और यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स (यूके) के वैज्ञानिकों ने भी सहयोग किया. विशेषज्ञों का कहना है कि भागीरथी बेसिन के 238 छोटे-बड़े ग्लेशियर गंगा को सदानीरा बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ऐसे में इन ग्लेशियरों का द्रव्यमान घटने का अर्थ है भविष्य में जल संसाधनों की गंभीर चुनौती. डॉ. भांबरी ने बताया कि इस स्टडी के निष्कर्ष नीति-निर्माताओं और पर्यावरण वैज्ञानिकों के लिए एक चेतावनी हैं. हिमालय क्षेत्र में नियमित निगरानी प्रणाली को और सुदृढ़ करने तथा जलवायु अनुकूलन रणनीतियों पर जल्द काम करने की जरूरत है, ताकि आने वाले वर्षों में गंगा की जीवनदायिनी धारा बनी रह सके.
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