सुप्रीम कोर्ट ने क्या आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथी जैसी स्वदेशी चिकित्सा पद्धतियों से इलाज करने वाले चिकित्सकों को सेवा शर्तों, सेवानिवृत्ति की आयु और वेतनमान निर्धारित करने के लिए एलोपैथिक चिकित्सकों के समान माना जा सकता है पर विचार करने के लिए मामले को बड़ी बेंच को भेज दिया है.
प्रधान न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने 13 मई को उन याचिकाओं पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था, जिनमें स्थिति स्पष्ट करने का अनुरोध किया गया था कि क्या सरकारी अस्पतालों और क्लीनिकों में आयुष पद्धति से इलाज करने वाले चिकित्सकों की सेवा शर्तें और सेवानिवृत्ति की आयु एलोपैथी चिकित्सा पद्धति से इलाज करने वालों से अलग हो सकती है.
मुख्या न्यायाधीश की पीठ ने 17 अक्टूबर को दिए गए आदेश में कहा कि इस बात पर मतभेद है कि क्या दोनों पद्धतियों के चिकित्सकों को सेवा लाभों के लिए समान माना जा सकता है और इसलिए इस मुद्दे पर एक प्राधिकार वाली व्याख्या की आवश्यकता है.
एलोपैथी शब्द होम्योपैथी के संस्थापक सैमुअल हैनीमैन ने गढ़ा था. उन्होंने इसका प्रयोग उस समय प्रचलित मुख्यधारा की चिकित्सा प्रणाली को बदनाम करने के लिए किया था. कोर्ट ने कहा कि पूर्व के निर्णयों में इस बात पर अलग-अलग रुख अपनाया गया था कि आयुष चिकित्सक एलोपैथिक चिकित्सकों के समान सेवानिवृत्ति लाभ और वेतनमान का दावा कर सकते हैं या नहीं.
पीठ ने कहा, ‘हम राज्यों की इस दलील को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि (एलोपैथिक चिकित्सकों की) सेवानिवृत्ति आयु में वृद्धि केवल यह सुनिश्चित करने के लिए की गई थी कि जनता का इलाज करने के लिए पर्याप्त अनुभवी चिकित्सक उपलब्ध हों.’
शीर्ष अदालत कहा, ‘एलोपैथी में चिकित्सकों की जो कमी है, वह स्वदेशी चिकित्सा पद्धतियों में नहीं है, विशेषकर तब, जब स्वदेशी चिकित्सा पद्धतियों के चिकित्सकों द्वारा महत्वपूर्ण जीवन रक्षक उपचारात्मक, हस्तक्षेपात्मक और शल्य चिकित्सा देखभाल नहीं की जाती है.’
फैसले में कहा गया, ‘हमारा मानना है कि इस मुद्दे पर एक प्राधिकार युक्त फैसला होना चाहिए और इसलिए हम इस मामले को एक बड़ी पीठ को सौंपते हैं. रजिस्ट्री को निर्देश दिया जाता है कि वह इस मामले को प्रशासनिक पक्ष से माननीय प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखे.’
न्यायालय ने बड़ी पीठ के निर्णय के लंबित रहने तक राज्यों और प्राधिकारियों को आयुष चिकित्सकों को उनकी वर्तमान सेवानिवृत्ति आयु के बाद, एलोपैथिक चिकित्सकों के लिए लागू सेवानिवृत्ति आयु तक, अस्थायी आधार पर, लेकिन नियमित वेतन और भत्ते के बिना, सेवा में रखने का विकल्प दिया.
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि यदि वृहद पीठ अंततः आयुष चिकित्सकों के पक्ष में फैसला देती है, तो वे विस्तारित अवधि के लिए पूर्ण वेतन और भत्ते के हकदार होंगे. साथ ही कहा कि इसके विपरीत, जो लोग सेवा में बने नहीं रहेंगे, उन्हें बाद में उनके पक्ष में निर्णय होने पर भी बकाया राशि मिलेगी.
शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि अंतरिम अवधि के दौरान सेवा में बने रहने की अनुमति प्राप्त आयुष चिकित्सकों को उनके वेतन और भत्ते का आधा भुगतान किया जाएगा, जिसे वृहद पीठ के फैसले के आधार पर पेंशन या नियमित परिलब्धियों में समायोजित किया जाएगा.
पीठ इस मुद्दे पर 31 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी और उसने कई वकीलों को सुना, जिनमें राजस्थान सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और कुछ आयुर्वेदिक चिकित्सकों का प्रतिनिधित्व करने वाले अश्विनी उपाध्याय शामिल थे. पिछले साल तीन मई को पीठ ने इस मुद्दे पर सुनवाई को सहमति जताई थी.


