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उत्तराखंड के धराली में भीषण तबाही की सामने आईं सेटेलाइट तस्वीरें, बादल फटने की वजह का भी खुलासा
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उत्तराखंड के धराली में भीषण तबाही की सामने आईं सेटेलाइट तस्वीरें, बादल फटने की वजह का भी खुलासा

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उत्तराखंड के धराली में बादल फटने से 4 लोगों की मौत हो गई है. उत्तरकाशी के धराली गांव में मंगलवार (5 अगस्त) को बादल फटने के बाद अचानक बाढ़ आ गई, जिसकी से अभी तक कई लोग लापता हैं. अब इस आपदा के कारणों की एक्सक्लूसिव तस्वीर सामने आई हैं. भूटान में PHP-1 के वरिष्ठ जियोलॉजिस्ट इमरान खान ने उस गेल्सियर डिपोजिट स्लाइड की तस्वीरें साझा की हैं.

जियोलॉजिस्ट इमरान खान ने बताया धराली गांव से लगभग 7 किमी ऊपर की ओर, समुद्र तल से लगभग 6,700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, ग्लेशियर डिपॉजिट डेबरी का एक बड़ा हिस्सा टूटने से मलबा तेजी से नीचे घाटी की ओर आया गया. सैटेलाइट इमेज के मुताबिक ग्लेशियर मलबे की मोटाई 300 मीटर और क्षेत्रीय विस्तार तकरीबन 1.12 वर्ग किलोमीटर का बताया गया है, जिसके कारण निचले इलाकों में तबाही मची है.

धराली में क्यों मची तबाही, सामने आया कारण

उत्तराखंड के उत्तरकाशी धराली में 5 अगस्त को आई भीषण आपदा के पीछे के असल कारणों का खुलासा वरिष्ठ जियोलॉजिस्ट इमरान खान की शेयर की गई तस्वीरों से हुआ है. इमरान खान भूटान में चल रहे PHPA-1 में काम करते हैं. उन्होंने सोशल मीडिया पर फोटो शेयर की है, जिसके जरिए धारली में हुई घटना की विस्तृत जानकारी दी गई है. इसमें कई तकनीकी पहलू भी शामिल हैं.

धराली गांव से लगभग 7 किमी ऊपर की ओर, समुद्र तल से लगभग 6,700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, हिमनदों से बने मोटे तलहटी निक्षेपों का एक महत्वपूर्ण समूह पाया गया है. इन निक्षेप अनुमानित ऊर्ध्वाधर मोटाई 300 मीटर है. इसका क्षेत्रीय विस्तार 1.12 वर्ग किमी है. इसकी संरचना अनुमानित हिमोढ़ और हिमनद-नदी पदार्थ की है.

एक मिनट से भी कम समय में गांव तक पहुंचा मलबा

धराली में मंगलवार (5 अगस्त) को हुई बादल फटने की घटना के दौरान भारी बारिश और पानी के तेज बहाव ने हिमनद से बने मलबे को अचानक खिसका दिया. नाले के रास्ते में खड़ी ढलान ने मलबे की गति को और बढ़ा दिया. यह करीब 7 किमी तक फैली है. इससे तेज रफ्तार में मलबा एक मिनट से भी कम समय में धराली गांव तक पहुंच गया, जिससे काफी नुकसान हुआ.

क्या होता है ग्लेशियर डिपोजिट

ग्लेशियर डिपोजिट, ग्लेशियरों के जरिए जमा हुई सामग्री होती है. इसमें बर्फ के बड़े-बड़े टुकड़े होते हैं. ये टुकड़े गुरुत्वाकर्षण के कारण धीरे-धीरे नीचे की ओर खिसकते रहते हैं. ये रास्ते में चट्टानों, बजरी, रेत और मिट्टी जैसा मलबा भी जमा करते हैं. उन्हें लेकर आगे बढ़ते हैं. जब ग्लेशियर पिघलता है, तो यह अपने साथ लाए गए मलबे को पीछे छोड़ देता है, जिसे ग्लेशियल डिपोजिट कहते हैं.



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