Vrindavan के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद जी महाराज एक वायरल वीडियो को लेकर जबरदस्त विवादों में घिर गए हैं। वीडियो में Premanand Maharaj के द्वारा कही गई एक 14 सेकंड की बात—”100 में केवल 4 लड़कियाँ ही पवित्र होती हैं”—को लेकर देशभर में बहस छिड़ गई है।
विचारधारा पर उठे सवाल, लेकिन समर्थकों की संख्या भारी
हालांकि, प्रेमानंद जी महाराज के भक्तों और अनुयायियों का कहना है कि यह वीडियो अधूरा और संदर्भ से काटा गया है। वे इसे मीडिया का एक पक्षीय चित्रण मानते हैं। लेकिन यह भी सच है कि सार्वजनिक मंच से इस तरह की बात का निकलना स्वाभाविक रूप से चर्चा का विषय बन जाता है।
वृंदावन से उठा संत, जिसकी ज़िंदगी बनी प्रेरणा
कानपुर जिले के सरसौल तहसील के अखरी गांव में जन्मे संत प्रेमानंद महाराज का बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था। उनका जन्म 1969 में एक अत्यंत धार्मिक परिवार में हुआ था। उनके दादा स्वयं एक तपस्वी संन्यासी थे, और उनके माता-पिता भी गहन धार्मिक प्रवृत्ति वाले थे। पिता शंभू पांडे और मां रमा देवी दुबे धार्मिक स्थलों पर सेवा करना अपना जीवन मानते थे।
बाल्यकाल से अध्यात्म की ओर झुकाव
अनिरुद्ध ने मात्र पांचवीं कक्षा में ही भगवद गीता का पाठ शुरू कर दिया था। अपने गांव के शिव मंदिर में घंटों बैठकर ध्यान, पूजा और जप करते थे। शिव भक्ति के माध्यम से उनके भीतर संन्यास की भावना जन्म लेने लगी। उनके परिवार वालों को भी यह भान नहीं था कि एक दिन यही बालक भक्ति और वैराग्य की मिसाल बन जाएगा।
13 साल की उम्र में त्याग दिया संसार
1985 में, जब अनिरुद्ध केवल 13 साल के थे, उन्होंने घर छोड़ दिया। बिना किसी को बताए तड़के तीन बजे घर से निकल पड़े और गांव के पास एक शिव मंदिर में 14 घंटे तक भूखे-प्यासे बैठे रहे। इसके बाद उन्होंने संन्यास मार्ग की ओर कदम बढ़ाया।
संसार से मोहभंग की एक कहानी
गांव के लोग बताते हैं कि अनिरुद्ध ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर गांव के शिव मंदिर के लिए एक चबूतरा बनाना चाहा था। जब कुछ लोगों ने उन्हें रोक दिया तो यह बात उनके हृदय को गहरे तक आघात पहुंचा गई। इसी क्षण उन्होंने तय किया कि अब वे इस संसार से दूरी बना लेंगे। यही वह क्षण था जिसने अनिरुद्ध को प्रेमानंद बनाने की नींव रखी।
भक्ति के मार्ग में कठिन तपस्या और स्वास्थ्य की चुनौतियाँ
प्रेमानंद महाराज ने वाराणसी में भी चार वर्ष कठोर तपस्या की। इसी दौरान उनकी दोनों किडनियाँ खराब हो गईं। डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था। लेकिन एक डॉक्टर, जो राधा रानी के उपासक थे, ने उन्हें वृंदावन जाने की सलाह दी। कहा कि राधा रानी की कृपा से सब कुछ संभव है। इस विश्वास के साथ प्रेमानंद महाराज वृंदावन पहुंचे और श्री हित गौरांगी शरण जी महाराज को अपना गुरु बनाया। वहीं से उनकी राधा रानी के प्रति अखंड भक्ति की यात्रा शुरू हुई।
नाम बदला, जीवन बदला — आरयन ब्रह्मचारी से बने प्रेमानंद
प्रारंभ में उन्हें ‘आरयन ब्रह्मचारी’ के नाम से जाना गया, फिर आगे चलकर उनका नाम ‘स्वामी आनंदाश्रम’ रखा गया। लेकिन वृंदावन में भक्तों ने उन्हें ‘प्रेमानंद महाराज’ के नाम से पुकारना शुरू किया।
गांव और परिवार से आज तक दूरी
प्रेमानंद महाराज के बड़े भाई गणेश दत्त पांडे बताते हैं कि प्रेमानंद महाराज आज तक कभी परिवार से नहीं मिले। जब उनसे पूछा गया कि वे क्यों नहीं मिलते, तो उन्होंने कहा कि “हम गृहस्थ हैं और वो संत हैं। अगर हमने उन्हें प्रणाम किया तो संतों को भी हमारे पैर छूने पड़ेंगे। वो हमारे बड़े भाई हैं, लेकिन संतत्व के स्तर पर उनसे नीचे हैं। इसीलिए हम कभी उनसे मिलते नहीं।”
विचार और शिक्षाएं: भक्ति, समर्पण और सेवा का पाठ
प्रेमानंद महाराज राधा रानी के अनन्य भक्त हैं। वे भक्तों को ‘नित्य विहार रस’, ‘सहचारी भाव’ और ‘प्रेम रसराज’ जैसे गूढ़ आध्यात्मिक सिद्धांतों की शिक्षा देते हैं। उनका जीवन कठिन तप, सेवा, त्याग और भक्ति का प्रतीक है।
बीमार शरीर, लेकिन भक्ति में अडिग
आज भी वह दोनों किडनी फेल होने के बावजूद हर दिन dialysis के बावजूद भक्तों को प्रवचन देते हैं। उनका जीवन इस बात की मिसाल है कि जब आस्था प्रबल हो, तो शरीर की कमजोरी भी मार्ग में बाधा नहीं बनती।
विवाद के पीछे क्या है?
प्रेमानंद महाराज के बयान को लेकर विवाद भले ही उठा हो, लेकिन उनके अनुयायियों का दावा है कि उनकी बात को पूरी तरह समझे बिना टिप्पणी करना अनुचित है। उन्होंने हमेशा स्त्री-पुरुष दोनों को भक्ति, संयम और सेवा की शिक्षा दी है।
क्या मीडिया ने वीडियो को संदर्भ से काटा?
कई लोगों का मानना है कि 14 सेकंड का जो वीडियो सामने आया है, वो पूरा नहीं है। यह वीडियो शायद उनके लंबे प्रवचन का एक छोटा हिस्सा है, जिसे गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
आज भी वृंदावन में हज़ारों भक्तों के प्रेरणा स्रोत
हर साल वृंदावन में हज़ारों श्रद्धालु प्रेमानंद महाराज से आशीर्वाद लेने आते हैं। उनके प्रवचनों में प्रेम, शांति, संयम और राधा-कृष्ण की लीलाओं का सार समाहित होता है।
वृंदावन के संत प्रेमानंद महाराज के जीवन की यह कहानी न केवल एक संत के त्याग, भक्ति और तपस्या का प्रतीक है, बल्कि समाज के लिए यह एक चेतावनी भी है कि हम किसी भी बयान या वीडियो को बिना पूरा संदर्भ समझे आकलन न करें। उनकी शिक्षाएं आज भी लाखों लोगों को भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। भले ही शरीर ने साथ छोड़ा हो, लेकिन आत्मा की शक्ति से वे आज भी भक्तों को दिशा दिखा रहे हैं।